रणनीति
छुपा लेता हूँ
अपने आक्रोश को नाखून में
बदल देता हूँ
अपमान को हंसी में
आत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से
सींचता हूँ जिजिविषा को
नहीं
ना पोस्टर , ना नारे, ना इंकलाब
मन के गहरे पोखर से
ढूँढ कर लाता हूँ एक शब्द
पकाता हूँ उसे, आत्मा की आँच पर
बदलता हूँ कविता में
लाकर रख देता हूँ
मोर्चे पर
वाह!
जवाब देंहटाएंआप की भावपूर्ण रचना पसन्द आई । लगता है कि फ़ीजी में आप की कविता परवान चढ़ रही है । मेरी बधाई और शुभकामनाएँ लें ।
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