मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

चीन की ताजपोशी

चीन की ताजपोशी







                                     चीन की ताजपोशी

चीन को पश्चिम को जीतने और किंग बनने   के लिए खतरनाक वायरस वाले जानवर की जरूरत थी।  अपने भीतर वायरस लेकर घूम रहे चमगादड़ को किसी देश से गठजो़ड़ की जरूरत थी। वह सोच रहा था कि उसके जैसा गुण संपन्न देश कौन सा है । जो उसका नेचुरल एलाई ( स्वाभाविक मित्र) हो। वह उस देश के ‘लोगो ‘ का हिस्सा  बनना चाहता था। चीन ने चमगादड़ की और देखा और मिंग मिंग कहा । चमगादड़ ने चीन की और देखा और टिंग टिंग कहा । दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा । दोनों ने महसूस किया ‘वी आर मेड फार इच अदर’ और डील पक्की हो गई। 

 देशों के चरित्र और उसके राष्ट्रीय पशु - पक्षियों का घनिष्ट संबंध रहा है । एक समय था ब्रिटेन का सितारा बुलंदी पर था। उसका राष्ट्रीय पशु शेर था । वह ब्रिटेन के प्रभाव का प्रतीक था । यहाँ तक की उसने अपना नाम ग्रेट ब्रिटेन कर लिया।  ब्रिटेन का ‘ग्रेट’ अब  हँसने लायक है। जिसका प्रधानमंत्री दूसरे देशों की नर्सों के उपचार के सहारे जीवित लौटा हो उसकी बाजार में रेटिंग तो शाहरूख खान की फिल्मों की तरह है। खंडहर बता रहे हैं कि इमारत बुलंद थी।   अब इतनी ताकत तो नहीं रही कि विश्व युद्द का नेतृत्व कर सकें पर अपने एक और राष्ट्रीय पशु बुलडाग जैसा बनकर दोस्तों के पीछे खड़े होकर वह इराक जैसे मेमनों पर भौंक  सकता हैं, नोच सकता है। अपने ही राष्ट्रीय पक्षी मोर की बात कर लें। कितना खूबसूरत । पर पैर ! मतलब भयानक गरीबी । बेहद बदसूरत। उसे छुपाते फिरते हैं। विदेशी नेता भारत आए तो छुपाने के लिए दीवार बनानी पड़ती है।   उधर उन्नीसवीं शताब्दी में सौ साल तक दुनिया का नेतृत्व करने वाले अमेरीका की हालत लड़खड़ाई हुई है। अमेरीका का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बाज बूढ़ा हो गया है ।  उसके पंजों का पैनापन गया। चोंच में इनफेक्शन है और वह डें़टिस्ट के पास चक्कर लगाता देखा गया। उसका नया राष्ट्रीय चिन्ह भैंसा अपने ही बोझ से गिरा जा रहा है । 

 चीन और चमगादड़ में एक और समानता है। चीन भी चमगादड़ की तरह काफी समय से दुनिया के सिर पर उल्टा खड़ा था अपने छोटे भाई उत्तरी कोरिया और पाकिस्तान जैसे चमगादड़ों के साथ दुनिया के सिर पर उल्टा खड़ा था । इन्हें सीधा खड़ा होना ही नहीं आता । ये सदा उल्टे चलते हैं। चीन ने देखा उसका ड्रेगन अकेला काम नहीं कर पाएगा । अमेरिका का बाज और भैंसा, ब्रिटेन  के शेर और बुलडाग, युरोप के अन्य जंगली जानवरों के साथ मिलकर उसके ड्रेगन को जीतने नहीं देंगे। उसने ड्रेगन के साथ -साथ चमगादड़ के साथ गठजो़ड़ किया । दोनों उल्टों ने सोचा कि दुनिया को उल्टा लटका दें। चमगादड़ पर बैठ चीनी ड्रैगन युरोप पहुँचा । उसने देखा कि औद्योगिककरण और  विज्ञान ने युरोप और अमेरिका को एक अलग तरह का अहंकार और नस्ली श्रेष्ठता का भाव दिया है कि यह बीमारियाँ तो एशिया और अफ्रीका के गरीब लोगों के लिए हैं। 



चीन की कुछ विशेषताएँ हैं , जो दुनिया में कहीं नहीं मिलती । वह अकेला देश है  जो झरने , ताजमहल , सभ्यता के प्रतीकों या उसके  अवशेषों के लिए नहीं अपनी दीवार के लिए जाना जाता है और दीवार भी दुनिया की सबसे लंबी! उस लंबी दीवार से ट्रंप , जानसन, मारकेल झांक नहीं पाए कि वुहान में क्या चल रहा है।  चीन की शब्दावली अलग है जो ड़ाक्टर सच बोलता है उससे ‘मैंने अफवाह उड़ाई थी’ कहकर माफीनामा लिखवाया जाता है। फिर वह बेचारा खुदा को प्यारा हो जाता है ।  अफवाहों को सच बना कर दुनिया में भय पैदा किया जाता है।  चीन के पास साम्यवाद और पूंजीवाद का ऐसा काकटेल है, जो साम्यवाद के भीष्म पितामह रूस के पास भी नहीं है। साम्यवाद का तानाशाही रवैया और पूंजीवाद का असीम लालच। 

अब वह  दुनिया का नेतृत्व करना चाहता था। दुनिया कोई भारत की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों की तरह थोड़े ही है कि नेतृत्व का मसला नेता जी के घर में संतान  के जन्म होते ही तय हो जाता है! ट्रम्प अपने को  दुनिया के नेता समझते हैं। उनके ब्रिटेन जैसे चमचे अभी भी उसको किंग ऑफ द वर्ल्ड कहते हैं। पर चीन और चमगादड़ उस पर भारी पड़े। कभी -कभी तो यह ़़डर लगता रहा कि कहीं ट्रम्प कोरोना ब्रीफींग के दौरान  ही खांसने ना लगें और थोड़े दिन में पता चला कि वे चीन से आए मेडिकल उपकरणों के सहारे या चीन से आए  वेंटिलेटर पर हैं। चमगादड़ को  अमेरिका और ब्रिटेन से खास खुंदक थी । ये देश शेर , बाज जैसे जानवरों  के चक्कर में रहे।  उन्होंने कभी उसका महत्व नहीं समझा। एक चीन ही था जिसने उसकी ताजपोशी की। 

उसमें भी खास गुस्सा उसे तथाकथित ग्रेट ब्रिटेन से था। उसका राष्ट्रीय पशु शेर ना जाने कब से जंगल का राजा बना हुआ था। चमगादड़  सीधा गया और उस देश के प्रधानमंत्री और युवराज के पेट  में जाकर उल्टा लटक गया । ‘ ग्रेट ‘ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री , युवराज बेचारे उल्टे लटक गए। चीन इस तमाशे पर तालियां बजा रहा था। दोनों को पता है कि यह शताब्दी उल्टे लोगों की होगी। यह जानकर ट्रम्प भी पिछले पांच साल से उल्टा -सीधा करते रहे । पर सिर्फ उल्टा और केवल उल्टा ही करने वाले चीन और चमगादड़ उस पर भारी पड़े। 



अब चीन के सरकारी अखबार का दावा है कि वर्ष 2020 में दुनिया का पचास प्रतिशत  अार्थिक उत्पादन उसके यहाँ होगा।  वह पश्चिम को याद दिला रहा है कि कभी पश्चिम ने उसके यहाँ अफीम की खेती करवा सबको नशेड़ी और काहिल बना दिया था। वह खांसते - छींकते यूरोप पर हँस रहा है। चमगादड़ लोगों की सांसों में कोरोना बन कर घुस गया है। लोग घरों में बंद है । उधर चीन हँसता हुआ , मुस्कराता हुआ , ठहाके मारता हुआ फिर से  अरबों के माल पर ‘मेड इऩ चाइना’  के ठप्पे मार रहा है। लोग साँस नहीं ले पा रहे हैं। सारा यूरोप , अमेरीका , दुनिया उल्टी लटकी हुई है। पश्चिम के थके हुए , बीमार  नेता देख नहीं पाए  कि तीसरा विश्वयुद्द हथियारों से नहीं लड़ा जाना था। ये खतरनाक दाँव-पेज से लड़ा जाना था।  वे पराजित हैं ।  खांसते , छींकते ,  अपनी और अपनी प्रजा के सांसों के  लिए मोहताज हैं । वे शव गिन रहे हैं  और चीन की ताजपोशी हो गई है। 



शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

बीच बहस में -भारतीय मीडिया





भारतीय मीडिया


बीच बहस में 


अनिल जोशी


इन बहसों में 
किसी का किसी से 
प्यार दिखता नहीं है
चूंकि वे कहते हैं कि
चैनलोंं पर 
प्यार बिकता नहीं है

बिकती है
घृणा 
हिंसा
झूठ


बिकता है 
तमाशा
मुर्गों की तरह  इंसानों को लड़ाओ
और लोकप्रियता पाओ
ये है बहुत आसान है !
एक तरफ धर्मांध हिंदू 
दूसरी तरफ हैं कट्टर  मुसलमान !
पर क्या  यही  उन्मादी लोग
हैं देश की पहचान  ?

 इसके बीच 
हैं करोड़ों -करोड़ों धर्मनिष्ठ हिंदू 
सिख  , ईसाई 
करोड़ों- करोड़ों अपने ईमान के पक्के मुसलमान
और  आस्था और अनास्था के बीच झूलते दूसरे 
वे सभी हैं  पहले इंसान 
उनके पास जाग्रत  विवेक है 
उन्हीं की  वजह से यह देश एक है!
उनकी भी आवाज बनो 

जिनके भीतर भेड़िया नहींं गुर्रा रहा
साँप नहीं लहरा रहा
उनकी भी आवाज सुनो!

खबर को रहने दो खबर
बाज आओ
उसे सनसनी ना बनाओ!


देखो 
लोगों की आस्था को  मत बदलो कट्टरता में
घृणा को 
तर्क मत दो
डर को  मत दो वज़ह
अविश्वास को खाद -पानी ना दो
उन्माद को मत दो जमीन 


इस देश पर रहम खाओ
हिंसा को आवाजें मार-मार कर  
मत  बुलाओ

द्वैष को  औजार ना दो
विचार को
मत पकड़ाओं हथियार
ये गांधी का देश है
संवाद को 
मत बनाओ बाजार


सुनो 
दंगों और उन्माद का नियम समझो
कहते हैं  देह मरती है
पर आत्मा
कभी अमर है

पर जब फैलती है उन्माद की आग
मनुष्यता कराहती है
देह तो मरती है 
बहुत बाद में
पहले आत्मा मर जाती है

बाज आओ
भोले -भाले लोगों  की आत्मा को मारने वाले
 वैचारिक वायरस के टीके
 मत लगाओ


जो विवेकशील है 
उन्हें सराहो
जो आग में पानी डाल रहे हैं
उन्हें आगे लाओ
 कबूतरों को 
घृणा की मशाल मत पकड़ाओ

तुम्हें किन स्वार्थों ने जकड़ा हुआ है
तुम देख नहीं पा रहे 
तुमने शब्दों को बंदरों के  उस्तरे की तरह पकड़ा हुआ है



तुम नहीं जानते तुम्हारे पास क्या है
शब्द 
तुमने क से कबूतर नहीं 
क से कत्ल बताया
तुम्हें ह से हल नहीं ह से हथियार पसंद है
शब्दों पर स्वार्थों का पहरा हैं
तुम्हारा  अपना खतरनाक ककहरा है

शब्द
समय और मनुष्य के पार देखता शब्द
व्यक्ति के  अंतर्मन में झांकता शब्द
 शब्द जिससे इंसान  विश्व को समझता हैं- टटोलता हैं
जिन शब्दों में मां की गोदी से निकल
 मनुष्य ज्ञान  के संसार में पहली बार आँख खोलता है
 हाँ हाँ- वही शब्द
  इसी शब्द को ऋषियों ने  ब्रहम कहा था


शब्दों के सौदागर !
क्या तुमने
कालिदास, तुलसी, कबीर के
सहज, मर्यादित, सच्चे शब्दों के अमृत को पिया है?
क्या तुमने रविन्द्र , मुक्तिबोध, गालिब के
स्वतंत्रता, समानता 
और 

गंगा- जमनी तहज़ीब के सच को जिया  है?

सुनो
पवित्र शब्दों में भारत के प्राण हैं
इनके निर्लज्ज, स्वार्थी  दुरूपयोग की वजह से
भारत की आत्मा लहुलुहान है


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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

प्रवासी मजदूरों का पलायन



सभ्यता की शाम 


अनिल जोशी


जैसे फूल में होती है सुगंध
सरसों में पीलापन
आम में मिठास
ओठों पर प्यास
वैसे ही उसकी सांसों में बसा हुआ है घर
इसलिए
उसे तो  घर ही जाना है

उसे घर जाना है
‘पर तुम्हारा घर तो यहां भी है।’’
‘वह रूआँसा हो जाता है
यहां में रहता हूँ 
किराए का छोटा सा मकान है
मेरा घर गाँव में ही है।’’

वह सूनी आंखों से  देखता है
 दीवारों और 
चारों तरफ फैले ईंटों के अनंत  विस्तार को  
जिसमें उसकी सांस 
रोज कम हो जाती हैं
उसे यह नहीं पता
 कि उसे कोरोना हो गया तो
वह आखिरी सांस कैसे छोड़ेगा!
कौन से सरकारी अस्पताल की बेंच पर 
निपट परायों के बीच
 दम तोड़ेगा।
उसे घर जाना है

दरअसल उसे उपचार पर भरोसा नहीं है
उसे लगता है 
मां ने पूजा की है
पत्नी ने वट सावित्री व्रत 
पिता ने दुआएँ मांगी हैं
दवाई और उपचार से क्या सधेगा
अगर बचेगा तो 
वह 
उन्ही की वजह से बचेगा
उसे तो घर जाना है

उसे लगता है
मकानमालिक के लिए है वह सिर्फ-
 किराएदार 
कारखाना मालिक के लिए सिर्फ-
 मजदूर
सड़क पर चलने वालों के लिए 
-ओए बिहारी 

कोरोना बीमारी है
पर मनुष्यता का अपमान
 यह तो महामारी है


उसके लिए कौन यहाँ अपना है!
शहर एक भयावह सच  है तो
घर, गाँव एक  खूबसूरत सपना है
उसे घर जाना है

हाय 
राजनीति ने 70 सालों में 
इतना भी अर्जित नहीं किया विश्वास
कि 
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री  रोकने के लिए खड़े हैं जोड़ कर हाथ
सुन नहीं रहा उनकी बात
वह जिद पर है 
उसे नहीं रहना इस कठिन समय में
हमारे संवेदनहीन शहर में
उसे घर जाना है


मनुष्यता सड़क पर है
उसे पुलिस ने मुर्गा बना रखा है
वह उकडूं चल रहा है
उसे कोई परेशानी नहीं है
 शहर में रोज  ऐसे ही चलवाते हैं
रेंगना उसकी सामान्य मुद्रा है
पर चाहे जो  हो
उसे घर जाना है

उसे चलना है 
पांच, दस, पचास, सौ , दो सौ , चार सौ कि मी
भूख , प्यास , गर्मी , तेज धूप , पाँव में छाले
पता नहीं वह कहाँ तक पहुँचता है
वह जीता है !
या मरता है!
व्यवस्था को क्या फर्क पड़ता है!
बस उसे घर जाना है



यह सभ्यता की शाम है
और
जैसे पंछी लौटते हैं 
घोंसले में
जैसे पशु लौटते है 
अपनी मांदों में
अपने विस्तार को भूल
पंख समेट रही है सभ्यता 
जिस- जिस को  इस सभ्यता ने
 घर से बेघर कर दिया था
वह अब जिद पर है
उन्हें घर जाना है