भारतीय मीडिया
बीच बहस में
अनिल जोशी
इन बहसों में
किसी का किसी से
प्यार दिखता नहीं है
चूंकि वे कहते हैं कि
चैनलोंं पर
प्यार बिकता नहीं है
बिकती है
घृणा
हिंसा
झूठ
बिकता है
तमाशा
मुर्गों की तरह इंसानों को लड़ाओ
और लोकप्रियता पाओ
ये है बहुत आसान है !
एक तरफ धर्मांध हिंदू
दूसरी तरफ हैं कट्टर मुसलमान !
पर क्या यही उन्मादी लोग
हैं देश की पहचान ?
इसके बीच
हैं करोड़ों -करोड़ों धर्मनिष्ठ हिंदू
सिख , ईसाई
करोड़ों- करोड़ों अपने ईमान के पक्के मुसलमान
और आस्था और अनास्था के बीच झूलते दूसरे
वे सभी हैं पहले इंसान
उनके पास जाग्रत विवेक है
उन्हीं की वजह से यह देश एक है!
उनकी भी आवाज बनो
जिनके भीतर भेड़िया नहींं गुर्रा रहा
साँप नहीं लहरा रहा
उनकी भी आवाज सुनो!
खबर को रहने दो खबर
बाज आओ
उसे सनसनी ना बनाओ!
देखो
लोगों की आस्था को मत बदलो कट्टरता में
घृणा को
तर्क मत दो
डर को मत दो वज़ह
अविश्वास को खाद -पानी ना दो
उन्माद को मत दो जमीन
इस देश पर रहम खाओ
हिंसा को आवाजें मार-मार कर
मत बुलाओ
द्वैष को औजार ना दो
विचार को
मत पकड़ाओं हथियार
ये गांधी का देश है
संवाद को
मत बनाओ बाजार
सुनो
दंगों और उन्माद का नियम समझो
कहते हैं देह मरती है
पर आत्मा
कभी अमर है
पर जब फैलती है उन्माद की आग
मनुष्यता कराहती है
देह तो मरती है
बहुत बाद में
पहले आत्मा मर जाती है
बाज आओ
भोले -भाले लोगों की आत्मा को मारने वाले
वैचारिक वायरस के टीके
मत लगाओ
जो विवेकशील है
उन्हें सराहो
जो आग में पानी डाल रहे हैं
उन्हें आगे लाओ
कबूतरों को
घृणा की मशाल मत पकड़ाओ
तुम्हें किन स्वार्थों ने जकड़ा हुआ है
तुम देख नहीं पा रहे
तुमने शब्दों को बंदरों के उस्तरे की तरह पकड़ा हुआ है
तुम नहीं जानते तुम्हारे पास क्या है
शब्द
तुमने क से कबूतर नहीं
क से कत्ल बताया
तुम्हें ह से हल नहीं ह से हथियार पसंद है
शब्दों पर स्वार्थों का पहरा हैं
तुम्हारा अपना खतरनाक ककहरा है
शब्द
समय और मनुष्य के पार देखता शब्द
व्यक्ति के अंतर्मन में झांकता शब्द
शब्द जिससे इंसान विश्व को समझता हैं- टटोलता हैं
जिन शब्दों में मां की गोदी से निकल
मनुष्य ज्ञान के संसार में पहली बार आँख खोलता है
हाँ हाँ- वही शब्द
इसी शब्द को ऋषियों ने ब्रहम कहा था
शब्दों के सौदागर !
क्या तुमने
कालिदास, तुलसी, कबीर के
सहज, मर्यादित, सच्चे शब्दों के अमृत को पिया है?
क्या तुमने रविन्द्र , मुक्तिबोध, गालिब के
स्वतंत्रता, समानता
और
गंगा- जमनी तहज़ीब के सच को जिया है?
सुनो
पवित्र शब्दों में भारत के प्राण हैं
इनके निर्लज्ज, स्वार्थी दुरूपयोग की वजह से
भारत की आत्मा लहुलुहान है
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