गुरुवार, 14 मई 2020

टिंबकटू में खोरोना




                                      टिंबकटू  में खोरोना

एक द्वीप था - टिंबकटू । उसकी प्रजा सब प्रकार से समृद्ध और सुखी थी। उसे पृथ्वी पर स्वर्गलोक जैसा माना जाता था। इतना सुखी - इतना सुखी की वहाँ चाकलेट के पहाड़ दिखाई देते थे । अाईसक्रीम की नदियां बहती थी। पीजा के पठार थे। मैक़डानल्ड के  नोन वेज बर्गर की घाटियां थी। । बच्चे पैदा होते ही मां का दूध नहीं  बल्कि कोक या पेप्सी मांगते थे। 

उस देश का राजा पंप था । उसका नाम पंप था पर वह दरअसल लोगों में हवा भरने का नहीं, निकालने का काम करता था। उसमें खुद में हवा भरी रहती थी ।वह अपने चुटकलों के लिए विख्यात था। न .. ना वे चुटकले नहीं कहता था। दरअसल वह  बातें सीरीयसली ही लिखता था। पर दुनिया उसके चुटकलों पर हँसा करती थी। उस जमाने में उनके चुटकलों को ट्ववीट कहा जाता था। वह ट्वीट में आम तौर पर बीट करता था। पर उसकी ताकत की वजह से बहुत से लोग बीट को उसकी कृपा का प्रसाद ही मानते। वह कभी कह देता कि किसी द्वीप को चुटकियों में उड़ा देंगे। कभी कहीं दीवार खड़ी करने की बात करता । वह अपने दोस्तों को डराता और दुश्मन डर जाते थे कि अगर यह दोस्तों की ऐसी -तैसी कर रहा है तो दुश्मनों के साथ क्या करेगा। सनकी है.. इससे दूर रहो। 

एक बार  टिंबकटू द्वीप के राजा पंप को बताया गया  कि पता चला है कि चिंग चिंग द्वीप मंे खोरोना महामारी हो गई है। चिंग चिंग द्वीप के लोग मरने लगे हैं। टिंबकटू द्वीप मे चिंग चिंग द्वीप से भी व्यापार करने लोग आते हैं।  इसलिए टिंबकटू द्वीप में भी महामारी का खतरा है।  उसने राज्य के वैद्यों को बुलाया और उनसे पूछा।  सबने कहा कि मामला बहुत संकटपूर्ण हो सकता है। प्रजा को कहा जाए कि वह घर में ही रहे। पंप ने हवा में मुट्ठी लहराई और कहा कि हमारी चिकित्सा व्यवस्था की असली हालत मैं जानता हूँ। 
 हमारे चिकित्सालयों में वैद्यों के पास काफी दिनों से कोई केस नहीं आ रहे हैं। शिकायत आई है कि वे सड़क पर चलते स्वस्थ लोगों को ललचाई नजरों से देखतेे हैं। कईयों को तो वे अस्पताल के अंदर फ्री रेस्टोरेंट है- कहकर ले जाते हैं।  सामान्य मरीजों को भी ढूंढ कर लाना ऐसे कठिन होता जा रहा है जैसा बंबू द्वीप में नसबंदी के लिए लोगों को हस्पतालों में लाना    कुछ दिन पहले ़डॉक्टरों ने यहाँ तक प्रस्ताव दिया था कि अगर टिंबकटू द्वीप में मरीज कम हैं तो उन्हें बाहर से मरीज आयात करने की अनुमति दी जाए।  श्मसान घाटों में भारी डिस्काऊंट है।  पादरियों को मौत पर बोले जाने वाली प्रार्थना ही भूल गई है।  दवाईयां गोदामों में पड़े - पड़े  एक्सपायर हो जाती है। जिनको दवाई देते भी हैं वे भी गूगल डॉक्टर से पूछते हैं कि दवाई खानी चाहिए या नही । हम एशिया और अफ्रीका के द्वीपों  में हो रही महामारियों के शोध  पर पैसा लगा रहे हैं और इधर हमारे पास दुनिया में बेचने के लिए हथियार बनाने के पैसे की कमी पड़ रही है। इसलिए बीमारियों पर  होने वाले शोध भी बंद कर दिए गए हैं। द्वीप के दूरगामी हित में है कि एक बार इसे आने दो । इसे हर्ड एफेक्ट  कहा गया । उसे मतलब बताने को कहा गया तो उसने उदाहरण दिया कि आदमीं गंजे कहकर कब बुलाए जाते हैं । जब ज्यादातर लोगों के बाल हो ।अगर देश ही गंजों का हो तो कौन किसका मजाक उडाएगा। हम सबको खोरोना करवा देंगे। पंप के मंत्रियों ने उसे बड़ी मुश्किल से समझाया। 
पंप के पास झंप , खंप , लंप जैसे दोस्त थे। उन्हें लगा खोरोना के चक्कर में उन्हें नुकसान हो जाएगा। उन्होंने पंप को कहा कि यह चिंग चिंग की साजिश है। वह चाहता है कि खोरोना के चक्कर में हम अपनी दुकाने बंद कर दें और उनका अलीबाबा और चालीस चोर टिंबकटू द्वीप की सारी नगदी उड़ा कर ले जाए। पंप ने  झंप , खंप, लंप जैसे दोस्तों की बात मानी और वैद्यों को डांटा और कहा कि हमें खोरोना पर  नहीं अलीबाबा चालीस चोर पर नज़र रखनी है।

इधर चिंग चिंग की खोरोना टिंबकटू पहुँच गई । वैद्याों ने तो काफी पहले से बता दिया था कि हमारी विज्ञान की बड़ी शोध दुनिया को केवल यह दिखाने के लिए है कि हम सबसे शक्तिशाली द्वीप है । इन पहाड़ों के नीचे मरी हुई चुहिया ही है।  आजकल  चिंग चिंग का असर इतना ज्यादा है कि हमारी लेबोरिट्रीयों में पाजामें  बनाने से लेकर चंद्रयान उड़ाने तक सारी परियोजनाएं पर चिंग चिंग का कब्जा है। हमारी पीजा में बेस उसी का है। हमारी आईसक्रीम में उसी की मिठास है। हमारे धनुष के तीरों में धार चिंग चिंग से ही आती है।


एक बात और थी टिंबकटू द्वीप के कुछ निवासी बहुत अंहकारी ,  बहुत  लापरवाह थे। उन्हें लगा कि उनके यहां के सैटेलाइट चांद और कई ग्रहों तक पहुंच गए है। परमाणु बम बना चुके हैं। यह कोरोना किस खेत की मूली है। वैसे भी वे चिंग चिंग द्वीप, बंबू द्वीप और अफ्रीका स्थित झंडू द्वीप के निवासियों को गाजर मूली समझते थे। उनका विश्वास था कि  कोरोना से इन द्वीपों के निवासी तो गाजर मूली की तरह खत्म हो जाएंगे पर हम जैसे टर्मिनेटरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला। उन्हें केवल अलीबाबा चालीस चोर की चिंता सता रही थी। 
उनमंें से कई चाहते थे बस उनके मदिरालय, वैश्यालय , जुआलय चलते रहने चाहिएं।  दिन में समुद्री तटों पर मस्ती होती रहे  । रात में मिस टिंबक टू बांहों में सोती रहे । ऐसा नहीं उन्हें  खोरोना के बारे में बताया नहीें गया पर पंप की तरह उनमें खूब हवा भरी थी। वे खोराना का मजाक उड़ाते थे। 

पर पंप के इन तुगलकी फरमानों की कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ी । देश में त्राहि त्राहि हो गई। दुनिया के सबसे बुद्धिमान , आधुनिक माने जाने वाले द्वीप में कभी ऐसा होगा किसी ने सोचा न था। शहर के शहर वीरान थे। चीलें उड़ रही थी। बहुत ही दुखद दृश्य था। 

अब तो हर जगह से खोरोना से डिंग डिंग याने डेथ की खबर आने लगी । पंप की बातों पर जो पहले मुंह छुपा कर मुस्कराते थे । अब ठहाके मार कर हंसने लगे। पंप ने स्थिति नियंत्रित करने की कोशिश की।   उसने बताया  कि वह ठेकेदार होने से पहले एक झोलाछाप वैद्य भी रहा है। उसने लोगों को देसी नुस्खे बताने शुरू किए।  इसे पंप थेरेपी का नाम दिया गया। यह अपने समय की बहुत बड़ी इजाद थी। जिसके लिए मेडिसन के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार देने तक पर विचार हुआ। यह आर -पार का खेल था। उसके विचार से इस महामारी का जन्म कीटाणु से हुआ है तो बस कीटाणु मारने वाला इंजेक्शन पिछवाड़े में ठोक दो । देखते -देखते पंप थेरेपी लोकप्रिय हो गई। जिस मरीज को पंप थेरेपी देने की बात करते थे। वह थर- थर कांपने लग जाता था । कुछ मरीजों ने इस थेरेपी लेने की तुलना में आत्महत्या करना ज्यादा पसंद किया।  उधर उसने घर की प्रयोगशाला में वैक्सीन भी विकसित करनी शुरू की । पूरा टिंबकटू भगवान से दुआएं कर रहा  हैं कि वह विकसित ना हो । अगर पंप वैक्सीन विकसित हो गई तो मरने वालों की संख्या में कम से कम कई जीरो और लग जाएंगे।   पंप को लगता था कि ये बातें तो कामन सेंस की हैं  लोगों को समझ क्यों नहीं आती ! वह समय का सिकंदर था चाहे बातें वह चुकंदर वाली करता हो। वैसे सिंकंदर और  चुकंदर में फर्क भी कितना होता है!

उधर हाहाकार मचने लगा था सारी दुनिया में खोरोना फैल चुका था। दुनिया घरों में दुबक पर बैठ गई थी । पर टिंबकटू देश के नजारे अलग थे। पंप रोज झोले से नया नुस्खा बता रहा था। लोगो न हँसना छोड दिया था पर रोने की ताकत नहीं रह गयी थी।। हँसते हँसते लोग रोेने लगे। हंसते हंसते लोग मरने लगे। रोते रोते लोग थक गए। पंप हवा निकले हुए ग्ुब्बारे की तरह पिचका हुआ था। कोरोना ने टिंबकटू की डिंग ़डिंग  मतलब ऐसी की तैसी कर  दी थी।  टिंबकटू द्वीप ने और दुनिया में पहली बार अपने नेता को निचुड़ा देखा। उसके झोले के सारे जोकर निकल चुके थे। वह खुद  मात की बिसात पर बैठकर जोकर लग रहा था। चिंग चिंग मंद मंद मुस्करा रहा था।

रविवार, 10 मई 2020

माँ के हाथ का खाना







माँ के हाथ का खाना 
अनिल जोशी
anilhindi@gmail.com


बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती है तुम्हारी मांँ
कहा एक मित्र ने 

पूछ कर आना उनसे 
कौन से  मसाले डालती हैं वो
हँस पड़ी माँ 
स्वादिष्ट खाना क्या सिर्फ मसालों से बनता है?

कौन सा घी इस्तेमाल करते हो तुम
पूछा - दूसरे मित्र ने
खाने में तरलता क्या घी से आती है?
एक प्रश्न मष्तिष्क में कौंधा 

इसमें कोई खास बात नहीं 
अगर हमारे पास समय हो तो
हम भी बना दें 
इतना ही स्वादिष्ट खाना 
जवान लड़की ने कहा
क्या सिर्फ समय होने से बन जाता है 
खाना स्वादिष्ट? 

नहीं ,
कुछ ना कुछ अद्भुत जरूर है मां के पास
तभी तो 
करेले में भी  आ जाती है मिठास 

माँ को बहुत अच्छा लगता है
गर्म -गर्म खाना बनाना और अपने सामने बैठ कर खिलाना
गुब्बारे से फूल जाती है रोटी
मचल उठता है बच्चा 
पहले मैं लूँगा

फूल सी महक आती है उसमें
तैरता रहता है स्नेह का घी
सब्जी जीभ स े लगते ही
संपूर्ण जिस्म बन जाता है 
जीभ
जबडो़ं में नही ंघूमता रहता है ग्रास 
सीधा हलक में उतर जाता है
तुप्त हो जाती है आत्मा 

मां देखती रहती है , ुमुस्कराती रहती है
कभी -कभी आंसू छलक जाते हैं उसके

सोचता हूँ 
किसी माँ के हाथ का खाना खाकर ही 
ऋषियों ने कहा होगा 
अन्न ही ब्रह्म है

शुक्रवार, 8 मई 2020

बोतल पार्टी का घोषणा पत्र



बोतल पार्टी का घोषणा पत्र








देश इतने दिनों से लॉकडाऊन में था। ऊंघता हुआ.., डरा हुआ.., सोता हुआ .., सोचता हुआ..। लॉक़डाऊन खत्म हुआ तो देश की जान में जान आयी। लोग डरे हुए थे।  किस से …? कोरोना से.. ? कोरोना चमगादड़ से कौन डरता है। जिस दिन मरना है तो मर जाएंगे। पर यह जो कुत्ते की मौत मारा जा रहा है.. ना मौसी। यह सही नहीं है।  यह लानतें सही नहीं जाती । करोडों लोगों की हालत केश्टो मुखर्जी जैसी हो रही है। जीभ सूख गयी है।  होंठ ऐंठ गए हैं। बहुत से अर्थशाश्त्री लॉकडाउन के बारे में कह रहे हैं कि अगर वह चलता रहा तो हजारों लोग भूख से मर जाएंगे। पर मैं कसम खाकर  कहे देता  हूँ - मौसी कि अगर लॉकडाउन कुछ दिन और चलता रहा तो यहां शराब की वजह से मरने वालों की लाशें बिछ जाएँगी और जिम्मेदार सरकार होगी और यह ढोंगी समाज होगा। आई हेट दीस स्क्राऊ़डल्स हाइपोक्रेट इकनामिस्ट  एंड समाज। 
अाखिर  कोई हद होती है । हम देशभक्त है। सरकार हमारे पैसे से चलती है। यह कोई हमसे प्रेम था जो शराब बंदी हटा दी। शराब के दाम बढा दिए । पांच , दस , पच्चीस , नहीं सत्तर प्रतिशत । सालो …वह भी ले लो। खून पी लो ..जनता का । पर हम देशभक्त हैं। देशभक्त हैं.. हम। पैट्रोयिट…।  आई लव माई कंट्री।  देश के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं यह चंद पैसे तो क्या चीज है ! जो पीते नहीं है , पूछो, मैं कहता हूँ पूछो उनसे … कितना चंदा दिया   पीएम केयर फंड में। सरकार ने एक -आध दिन की तनख्वाह जबर्दस्ती काट ली तो काट ली । एक हम हैं , रोज देते हैं। सुबह -शाम देते हैं। पैसा भी देते हैं । अपने जिगर का खून भी देते हैं।  जियो सरकार — जियो । जियो मुख्यमंत्री  जियो .. जियो प्रधानमंत्री  जियो । चीन साला क्या बिगाडे़गा । पाकिस्तान क्या बिगाड़ेगा। जब तक अपन हैं चिंता मत करो।  देश के लिए पीते रहेंगे। लीवर खराब हो जाएगा फिर भी पीते रहेंगे।  जैसे देशभक्ति हमारा धर्म है। वैसे ही पीना हमारा धर्म है। हम धर्म से नहीं गिरते । हम सडकों पर.. गिरते हैं।  नालियों में.. गिरते हैं। पर अपने धर्म से, देशभक्ति से, हम कभी नहीं गिरते। वी लव इंडिया..।
हमें पता चला कि ठेके खुल गए हैं। अब लोग कहते हैं रेड जोन , ओरेंज जोन , ग्रीन जोन। इन्हें क्या पता हमारी जोन अलग है। ह हमारी कोई जोन नहीं हैं। हमारी कोई जाति नहीं है। हमारा कोई मजहब नहीं है। मंदिर मस्जिद बैर कराते , मेल कराती मधुशाला। अरे सही बोलते हैं । लतीफ , रमेश , आसिफ, मुन्ना सब एक ही ठेके का अद्धा पीते हैं। पर जब नेता लोग आते हैं तो छुरे निकाल लेते हैं। 

लॉकडाउन खुला ।  हम सुबह पांच बजे जाकर लग गए लाइन में देश के लिए । हम रूक सकते थे और कुछ दिन । पर हमने कहा कि देश कंगला हो रहा है। पूछो मुख्यमंत्री जी से । मैं कहता हूँ पूछो ..  यही तो कहा  उन्होंने । हमने पत्नी को पता भी नहीं लगने दिया। हम देश के लिए मर मिटने वाले हैं। उसने हमारे त्याग को हमेशा नीची नजरों से देखा है। खैर.. एक दिन वह मुझे पहचानेगी। जब देर हो चुकी होगी। कम से कम मेरी फोटो पर तो ढंग से माला चढाएगी। सरकार और पुलिस को पता नहीं था कि हमारे अंदर इतना जज्बा है। उन्हें हमारे देश के लिए प्यार का अंदाजा नहीं था। वी लव इंडिया।  देशभक्त उमड़ पड़े पांच बजे से । अपनी बाजी लगा दी। अब इतने लोगों में गोल घेरे किसको दिखते हैं। दिख रही थी लाल… लाल बोतल. । दिख रहा था सुरूर.. । आज इतने दिन बाद खुशी का दिन आने वाला था । नदिया से दरिया, दरिया से सागर , सागर से गहरा जाम ,,, । आप हमें मार लो डंडे। मारो , हमारी जान ले लो ।  जान ले लो पुलिस ़डार्लिंग । पर हम गाँधी जी के नाम पर पीते हैं। यह हमारा सत्याग्रह है    हम देश के लिए अपनी जान दे देंगे पर पीछे नहीं हटेंगे। 

आपको क्या पता इस कोरोना में हमें कितने आँसू के घूंट पीए। एक -दो दिन  जैसे तैसे रोके रखा  । खुद ही राशन बांध लिया । छोटे -छोट पैग लेते थे। हाय कैसे दिन आए। मुहँ से कम आँखों से ज्यादा पीते  थे।  जैसे -तैसे हफ्ता बीत गया। लोगो को प्रवासी मजदूरों की पड़ी है कि वे लॉकडाउन में नहीं निकल पाए पर हमारे बारे में नहीं सोच रहे । असली धोखा तो हमारे साथ हुआ । रातों- रात ठेके बंद।   जैसे हजार के नोट बंद हुए थे। थोडे दिन पानी डाल -डाल कर पी । फिर साला मन को कितना समझाते । आखिर में खाली पानी ही रह गया। अंदर से नसें फटने लगती। आंखे जलने लगी। दिल उबलने लगा। घर तिहाड़ में तब्दील हो गया। गाली देते तो बेलन मारती  अंग्रेजों के जमाने की जेलर । 

आखिर क्या नहीं किया हमने देश के लिए । और देश.. । हमारा साला इतना भी ख्याल नहीं।  । बार -बार खाली बोतल की तरफ भागते । घरवाले हंसते  । पड़ोसियों से कितना मांगते । उनकी खुद जान निकली जा रही थी। पत्नी से कितना लड़ते.. । अगर पता चल जाता मोहल्ले में किसी के पास है तो वह फोन कर देती और कहलवा देती भाई साहब यह कई दिन से पीए जा रहे हैं , इन्हें बिल्कुल मत देना। यु नो मिस्टर । हिंदुस्तान का इतिहास पढ़  लो।  हिंदूस्तान घरवालों , नहीं.. नहीं घरवालियों की वजह स ेहारा है। इन्होंने कभी राइट टाइम पर सपोर्ट नही ं किया। हमने पी -पीकर इस ज्वालामुखी को चन्द्र मुखी समझा। आप क्या जानो अगर शराब ना होती तो जैसी जलालत भरी जिंदगी दी है एक दिन भी  सही जाती। रोज लड़ती हैं। आँखे दिखाती हैं । ताने मारती हैं। पर हम एक घूंट पीकर सब भू….ला देते हैं मौसी। आई हेट दीस वाईव्स .. नो नो . सारी सारी। 

कब से हमारे देश में बातचीत में कहा जाता है। उसकी दवा - दारू की व्यवस्था करो। कभी किसी राजनीतिक पार्टी ने दूसरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। कितनी जरूरी बात थी ।  खुद रात को अँधेरे में पीते थे और सुूबह हम पर कभी बैन लगाने , दाम बढ़ाने , कैद करने जैसी बातें करते हैं। हमारा कसूर यह है कि हम ढोंगी समाज में हैं। खुद पीते हैं और पीने वालों को गरियाते हैं । आई हैट दीस स्काऊंड्रल्स हाईपोक्रेट नेता पार्टी । 

एक बात और, हमें लगता है जनता से जरूरी चीजें छुपाई जाती हैं। कोरोना की शुरूआत में ही पता चल गया था कि जो पीएगा वह जिएगा। कोरोना उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती । पर यह खबर छुपाई गई। क्या वैक्सीन बनाने पर लगे हुए हो! जरा शराब पर रिसर्च करते तो पता चलता कि दो पैग वैक्सीन की भी बाप है ! फिर क्या कोरोना , काहे का रोना। नहीं मानते ! क्या आपने भैंस के साथ इश्क करते किसी को देखा है?  क्या आपने किसी को उछल-उछल कर आसमान पर थूकते देखा है ?  क्या आपने देखा नहीं दो घूंट जाते ही पिद्दी भी पड़ोस के पहलवान को गालियां दे दे कर बाहर आऩे और जान लेने की धौंस देता है। क्या आपने देखा है कि अंग्रेजी बोलने में जो हिचक कई किताबें पढ़ कर नहीं जाती , वह दो घूंट चखते ही चली जाती है। आप दो घूंट पिलाते फिर हमें चाहे वुहान भेज देते।  जड़ से खत्म हो जाती प्राब्लम । एक बोतल में तो हम चीन की दीवार पर चढ़ जाते।  पर दुख की बात है ढंग के रिसर्च होते कहां हैं ! आई हैट दीस स्काऊंड्रल्स हाईपोक्रेट प्रोफेसर। 


हमने ए  दुनिया तुझ से क्या मांगा। हाथी , घोड़ा , कार , कोठी  कुछ नहीं । सिर्फ सुकून , सिर्फ सुरूर , सिर्फ दो बूंद शांति की सुरूर की । पर यह मीडिया सब दारूबाज , हरामी । बिना पिए लिखते नहीं । दो बोतल दो ,नमकीन दो जो मर्जी लिखवा लो। हमें दौड़वा दौड़वा कर पिटवा रहे हैं। आई हैट दीस स्काऊंड्रल्स हाईपोक्रेट मीडिया।
पुलिस हमें ड़ंडे मार कर अपनी इमेज सुधार रही है। दो दिन में तुम्हारी दुकानदारी बंद हो जाए अगर हम वोट बंद कर दें तो। सोच लिया है । कतई सोच लिया है कि शराब पार्टी बनाएंगे।सरकार ने लॉकडाउन में क्या किया। क्या राहत का सामान बंटवाया। हमें कोई राहत नहीं मिली । ना , बिल्कुल ना। कम से कम सौ सेंटीलीटर ही भिजवाते ।। लानत है ऐसे नेताओं पर। 
 उसका चुनाव चिन्ह होगा बोतल। 

ऐसा नहीं कि नेता लोग नहीं जानते शराब की ताकत । चुनाव के समय इन्हें पता होता है कि चाहे जितने मर्जी बांध बना लो, सड़के बनवा दो। पानी दे दो  । बत्ती दे दो। पर लोग वोट उसी को देंगे जो बोतल देगा । जाओ  बनाओ ना… बांध । बनाओ ना .. सड़कें। जमानत जब्त हो.. जाएगी। मैं कहता हूँ जमानत जब्त हो जाएगी।  मैं तो कहता हूँ कि अगर कोई प्रोगेसिव पार्टी हो तो उसे अपना चुनाव चिन्ह बोतल रखना चाहिए। हम  सब उसी पार्टी में चले जाएंगे।  उस पार्टी को अपना घोषणापत्र में ऐसे मुद्दे रखने चाहिए (1) दारू की आऩ लाईन व्यवस्था करेंगे (2) दारू पर सब्सिडी देगें। (3) हर त्यौहार पर एक हफ्ते तक बोतल रोज फ्री मिलेगी।4 दफ्तरों में शराब एलाऊंस मिलेगा। (5) दारू पीने पर लड़ने वाली पत्नियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाएगी । (6)  दारू पीकर गाली देने को अभिव्यक्ति का अधिकार माना जाएगा। 6) इधर - उधर गिर जाने पर कपडे़ सरकार फ्री मे धुलवा कर देगी। (7) हमारे खिलाफ मारपीट और छेड़छाड़ के सारे मामले वापस लिए जाएं। मैं पूछता हूँ क्या हम देश की जनता नहीं हैं ? यह करोड़ों लोगो की मांग है।  अगर आप गलत -सही मुद्दों पर सब्सिडी दे सकते हैं तो दारू का मामला तो सबसे जैन्युन है माई डियर पोलिटिकल पार्टी।  कार्यकर्ता पहले पैग लगाएंगे फिर जनता के पास जाएंगे । तभी तो दिल की सच्ची बाते ंकरेंगे । सच में राम राज्य आ जाएगा। वेहर शराब ..नो हाइपोक्रेसी। दिल की बात।