सोमवार, 2 जनवरी 2017

अरक्षित - यों होता तो क्या होता




Anil Sharma ' Joshi '
anilhindi@gmail.com

एक प्रवासी - स्मृतियों और संभावनाओं में जीता 

अरक्षित दिशांतर मे प्रकाशित डॉ शालिग्राम शुक्ल द्वारा लिखी कहानी है । कहानी की बुनावट बड़ी महीन है और कहानी परत- दर- परत अपनी जड़ों से दूर रहने वाले भारतीय के अंतर्मन को इस तरह खोलती है कि बसंत, सूर्योदय, गोधूलि की बेला , फूल , चलती हुई हवा, पानी सब एक ही समय मे कई अर्थ देने लगते हैं, ज्यादातर अपने बाहरी रूपाकार से अलग... एक डरा देने वाला ठंडापन । जिसमें मानवीय उष्मा की आंच जैसे समाप्त हो गई है, हवा की अल्हड़ता साँय – साँय में बदल गई है, पानी जैसे खामोश है , शांत है पर अदर से जैसे बिना गंध की कोई सड़ांध, मृत्यु की आहट । जैसे जड़ो से कटे अपने प्रतिरूप को जीवन भर जीने की विवश , अभिशप्त । अपने से बार – बार पूछता.। एक गहरे – सार्थक प्रामाणिक प्रवासी अनुभव का टुकड़ा...। 
कहानी में पांच पात्र हैं- बलराज, एक हिंदुस्तानी मूल का व्यक्ति जिसका परिचय लेखक ने इस रूप में दिया है..शांत स्वभाव के लंबे और स्वस्थ व्यक्ति । एक सफल व्यक्ति जो अपनी रूसी पत्नी तमारा के साथ अमेरीका के सैनफ्रैस्सिको नगर मे रहते हैं। पिछले तीस साल से तमारा से विवाहित । उनके विवाहित जीवन को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है ‘ दोनों का अपना जीवन पिछले तीस साल से इस विदेशी शहर में सम और शांत रहा है। संतानहीनता कभी खली नहीं। विवाह के पहले दिन ही दोनों ने निश्चय कर लिया था कि इस करूणाहीन कठिन दुनिया में वे अपनी संतति लाने का अपराध न करेंगे। इस प्रतीक्षा के पीछे तमारा को किन्हीं कल्पित –अकल्पित यातनाओं की भयंकर स्मृति थी  जिससे अवगत हो उस रूसी सौंदर्य में कांपते बलराज बिजावत ने अपनी आहूति दे दी थी ‘  ।  मिसेज राव एक विधवा हैं , दीनहीन, कृपाकांक्षी सरल, सहज, विनम्र, सेवाभावी भारतीय गुणों से युक्त। मिसेज स्मिथ रंगभेद में विश्वास करने वाली गोरी महिला और उसका अपंग –अपराधी भाई हम्फ्री।
तमारा मिसेज राव पर दया कर उन्हें अपने घर में ले आती हैं। यह उनका आग्रह है, अनुरोध है जिसे बलराज अस्वीकार नहीं करता । पर यहीं से बलराज के सरल रेखा में चल रहे जीवन में परिवर्तन आता है...मिसेज राव की उपस्थिति , उनका दया  भरा साँवला दरिद्र रूप, और उनके चलने और बात करने का तरीका, उनका सब कुछ बलराज को किसी दूसरे देशकाल में ले जाता जहाँ जीवन की दूसरी संभावनाएं किसी वृक्ष में प्रतीक्षा करते फलों सी लगतीं- आकर्षक और सदा के लिए अप्राप्य। विचार उठने लगते उस जीवन के जो कभी रूपायित नहीं हुआ , जिसका अस्तित्व  सिवा उनके उदास दिल मे कहीं और नहीं था। । 
जैसे यह बरसों से शांत तालाब किसी कंकड़ की प्रतीक्षा कर रहा था । जैसे खिड़की किसी हवा के अंदर आने की .. । बलराज का परिचय कहानी में कुछ इस तरह से आता है। ..शांत स्वभाव के लंबे और स्वस्थ व्यक्ति। यह शांत , लंबे और  स्वस्थ तीनों शब्दों का खुलासा होते- होते साफ होता है कि इनके अर्थ सतही तरीके से नहीं किए जा सकते । क्या यहां शांत होने का अर्थ मृत होना तो नहीं है  बहुधा ऐसा होता है कि विदेश मे जाने से पूर्व व्यक्ति का व्यक्तित्व विकसित हो चुका होता है। गाहे – बगाहे , प्रासांगिक या अप्रासांगिक अपनी प्रतिक्रिया देना।  गांव –मोहल्ले में मिलने वाले मोची, भिखारी ,दुकानदार से बतियाना, परिचितों – रिश्तेदारों के दुख- सुख में द्रवित होना , होली में उत्साह की भांग, दीवाली में संबंघों की रोशनी और ईद में परिवेश की मिठास..। बसंत के साथ फूलों से तितलियों सी शरारत, पतझड़ में सूर्यास्त सा पीलापन सब उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बनते हैं और फिर विदेश में पहुंच कर एकाएक यह उमंग,उत्साह,सहजता, आत्माभिव्यक्ति, अनुभूति की सहजता की जगह एक कुलीनता , एक संयम एक ठंडापन  ले लेता है।
‘ वे प्राय किसी ऐसे समय में उतर – उतर जाते जो केवल संभव था कहीं दूर अतीत मे। वे उन संभाव्य क्षणों को चेतना में उभरते देखते रहे। उनके लिए बाहर की तेज हवाएं धीमी चलती, फुलवारी की भिनभिनाती मक्खियां बेहद शांत लगती। न जाने किन हाथों के स्पर्श रोमांचित कर जाते। 
 और यहीं सांकेतिक रूप से कहानी का सबसे मार्मिक स्थल आता है   ‘ एक रात बगीचे से निकल बलराज बाहर फेंस के उस पार चले गए जहां एक पुरानी कब्रगाह थी। सालों से हवा और सूर्य कब्र के पत्थरों को फाड़ चुके थे और जीव – जंतु उनकी दरारों से बाहर आते-जाते रहते। वहीं किसी हत्या के चिह्न थे- पंख और काला चोंच। बलराज की आंखे भीग चलीं- वे किसी घाव के आँसू नहीं थे, वे अपने प्रति दया और करूणा के आंसू थे और तमारा को अपना प्रतिरूप दे उसे छलने के आंसू थे। 
एक दिन बलराज काम पर नहीं गए । बसंत के उस दिन प्रकाश में तनिक भी करूणा नहीं थी। वह स्मृतियां और घाव उघारता रहा । किसी दूसरे देशकाल के दिन पुराने छेद लिए कंबंलों से महकते रहे जिसमें से पतिंगे पर झाड़ते  उड़ते रहे। 
तीस साल पहले भारत लौट गया होता , वहां घर बसाया होता, वहाँ की हवा में, धूप में, ऋतुओं मे तन-मन पका होता तो .. यों होता तो क्या होता  ? ‘ बलराज का बल जा चुका है उसकी शांतता में धीरे – धीरे एक मौत की आहट है । ना हो सकने का दुख ... संभावनाओं के संसार को ना पाने की पीड़ा..। उसके शारिरिक – सामाजिक रूप का लंबा होना एक आभास है, वर्ना तो वह एक छाया है. । तमाशा फिल्म के रणबीर कपूर की तरह।  उसकी स्वस्थता तो एक मिथ है, वह अपनी देह में नहीं है , वह वहां से हजारों किलोमीटर दूर । वह उन्हीं स्मृतियों और संभावनाओं मे जी रहा है। शांत , लंबा , स्वस्थ.....एक आभास , एक विडंबना ..जीवन में दीमक की तरह लग गया मृत्युबोध.. ।
...पर यह भी जानते थे कि बलराज के फैशनेबुल लिबास के पीछे छिपा था। कोई भाऱतीय भाषा बोलता सांवला पुरूष जिसकी सचाई सामने बैठे बसंत निहारते पुरूष से भिन्न थी। पिछले तीस साले से बलराज का उस प्रतिपुरूष से बराबर युद्द होता रहा। वे हमेशा अपने इस प्रतिरूप से हारते रहे हैं। 
प्राय इस विदेश के रेगिस्तान में जलती उनकी त्वचा और देह की जलती हड्डियां चाहतीं किसी हरी ठंडी अमराई में प्रवेश कर जाना ..
गंगा तट के किसी अतीत और सैन्फ्रंसिस्को के इस वर्तमान के बीच का सारा जीवन एक पाखंड था जिससे मुक्ति के सभी पथ बंद थे। 

मिसेज राव के प्रति बलराज का आकर्षण भी एक विश्लेषण मांगता है। उनके बारे में लिखा गया है ‘  चेहरा जो अनाकर्षक नहीं था..  उसके कई दांत अनुपस्थित लगे। उनके सांवले हाथ कितने दुर्बल और जीवनहीन लग रहे थे.. । तो फिर कौन सा आकर्षण था जिससे शांत और संतुलित बलराज के जीवन में तूफान आ गया था। ... उसमें भारत के किसी खंड का इतिहास पढ़ा जा सकता था। उसकी हड्डियों में व्यक्त थी वहां की कथाएं। ...     
‘ मिसेज़ राव की इस घर में उपस्थति, उनका दया भरा साँवला दरिद्र रूप , और उनके चलने और बात करने का तरीका, उनकी सरल हिंदी, उनका सब कुछ बलराज को दूसरे देशकाल में ले जाता जहां जीवन की दूसरी संभावनाएं, किसी वृक्ष पर प्रतीक्षा करते फलों सी लगतीं..आकर्षक और सदा के लिए अप्राप्य। उन क्षणो मे उनकी काया कांप – कांप उठती । विचार उठने लगते उस जीवन के जो कभी रूपायित नहीं हुआ , जिसका अस्तित्तव सिवा उनके उदास दिल में और कहीं नहीं था। “ 
तो उस अनाकर्षक अधेड़, कृपाक्, कई अनुपस्थित दांतों वाली मिसेज़ राव के दरिद्र रूप ने उनके तीस साल के वैवाहिक जीवन में तूफान ला दिया । बड़ी बात है यह आकर्षण  ‘ उसकी सरल हिंदी .. ‘  का था, उसके चलने और बात करने के तरीके का था , जो उसे दूसरे देशकाल में ले जाती , जहां वह अप्राप्य और आकर्षक संभवानाओं के साथ खेलने लग जाता। जहां एक नदी बहती हुई हिलोरें मारने लगती ।  उसका होना एक संभावना था , एक सुरंग थी जिसके पार प्रकाश भी हो सकता था। वो गोधूलि के समय प्रकाश के सपने देखने लगा । वर्तमान को अगोचर कर  उसका मन अतीत और संभवानाओं का ड्यूट गाने लगा और शांत पानी में चलती नाव एकाएक तूफान से घिर गई। 
एक दिन वह सत्य स्वीकार कर लेता है  बकवास नहीं तमारा । सारे सहवास के दिन मैं नाटक करता रहा , फिर मैने उस नाटक में विश्वास कर लिया, और अब उसका आखेट बना जाल में फंसे वृद्ध पशु – सा निरीह हो चला हूँ। “ उसने तमारा को भी मुक्ति का  अवसर दिया । 
मिसेज़ राव के घर मे प्रवेश के समय ही उनके पड़ोस में रहने वाली तमारा की सहेली स्मिथ ने तमारा से नई अपरिचित सांवली हिदुस्तानी औरत के  बारे में पूछा था। ‘ अपने जीवन में सांवले रंग के लोगों का विश्वास मिसेज़ स्मिथ नहीं कर सकी थीं। अपनी इस बीमारी को वे अपना गुण समझतीं और किसी अंधी परंपरा से जोड़ स्वयं को विशिष्ट। ‘ 
प्राय इस विदेश के रेगिस्तान में जलती उनकी त्वचा और देह की जलती हड्डियां चाहतीं किसी हरी ठंडी अमराई में प्रवेश कर जाना ..
तमारा अपने पति के मिसेज़ राव के प्रति आकर्षण को देख मिसेज स्मिथ का सहारा लेती है । कहानी का अंतिम प्रसंग एक लाश मिलने से शुरू होता है कोई अधजली लाश मिसीसिपी प्रांत के ग्लेंडोरा कस्बे के पास कपास के खेत में मिलती है। उसके बाद रंगभेदी व्यवहार का एक समाजशाश्त्र दिखाई देता है . .. अपराधी जो भी हो लेकिन लोग अक्सर कहते पाए जाते कि किस तरह वह विदेशी स्त्री जेम्स हम्फ्री के साथ कई बार दुर्व्यवहार करती देखी गई थी, कि किस तरह वह अपंग के जीवन से जोंक की तरह चिपक गई थी। यह सब कुछ तमाम टूटे हुए सपनों , शराब के अतिशय व्यवहार और शारिरिक हिंसा के संदर्भ में और भी भेदभरा ही चलता । जेम्स हंफ्री के कई अक्षम्य अपराधों को जानते हुए भी लोग उस भाषा – हीन अकिंचन का पक्ष लेने को तैयार नहीं थे। 
मिसेज स्मिथ कहती ‘ उस विधवा का तुम्हारे घर आना अशुभ था तमारा और अपने अपंग भाई की सेवा में मेरा भेजना उससे भी अशुभ था’’ , मिसेज़ स्मिथ कहतीं और अमरीका के दुर्भाग्य पर तरसती जहां तमाम अप्रीतकर अवांछित जीव बेरोक-टोक दरिद्र देशों से आते हैं.। 
सब जानने के बाद इसका अंत एक चरम पर पहुंचता है .. फिर अपनी निरीहता पर तरस खाने लगे। इस जीवन से उन्हें भय होने लगा था। मृत्यु से नहीं । कितने लंबे अर्से से वे मर रहे हैं, वे यह जानते हैं...
वे नदी को अपने विचारों की नदी समझ , उसका आशीष पाने उसके खतरनाक पानी में प्राय उतर जाते हैं। उनकी भीगी कांपती देह को बांहों में लिए चिंतित तमारा स्वयं से पूछती कि वे कब तक बलराज की रक्षा करती रहेंगी। 
किसी एक कहानी में प्यार – विश्वास , अविश्वास, मन की कई स्तरों पर जीता व्यक्ति, विदेश में देश, अंतर – देशीय विवाहों की जटिलताएं, जीवन में भाषा, विश्वासों और जीवन –शैली की भुमिका, एक स्थान पर  पनपे व्यक्तित्व को दूसरी जगह खिलने और विकसित होने की समस्या , रंगभेद का भयावह रूप दिखाई देता है। 
कविता में कहानी को बुना होना कई बार शानदार कविता का सृजन करता है। उसी प्रकार कहानी में कविता की भाषा होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है । उस रूप में यह कहानी एक लंबी कविता लगती है। मार्मिक कविता , मृत्युबोध को जीती, प्रेम के तरल , स्निग्ध, पहलूओं से साक्षात्कार करती , मौसम के उपलब्ध प्रतीकों से रस लेती कथा को आगे बढ़ती है । जहां हवा एक पात्र है और मक्खियां भी.. । कब्र पर चोंच और पंख .. एक मार्मिक अभिव्यंजना है। सटीक, अर्थाभिव्यक्ति में सक्षम और सतह से बहुत गहरे कई अर्थ बिंब बिखेरती..... । 
सबसे बड़ी बात है कि यह कहानी बहुत घटनाओं की बात नहीं करती , स्थितियां तो एक बड़े फलक पर जाने का रास्ता है। बल्कि इन सबके माध्यम से हमारे होने, या ना होने या होने की शर्तों और स्थितियों की बात करती है। होने ना होने की भाव जगत और मनोजगत से पुष्टि मांगती है। उमंग,उत्साह, उद्देगों, तरलताओं का साक्ष्य मांगती हैं । एक विदेशी भूमि में खिलने और गंध देन के लिए  भाषा, संवेंदनाओं, जीवन शैली के पानी – खाद  को एक आवश्यक शर्त के रूप में प्रस्तुत करती है।