गुरुवार, 5 नवंबर 2015

इधर एक अकेला सच था

इधर एक अकेला सच था
निहत्था और अहिंसक
दूसरी तरफ झूठ का विशाल साम्राज्य
अपने पूरे सैनिक साजो-सामान के साथ
झूठ ने सच के तीन टुकड़े किए
एक को उठा कर फेंक दिया
हिमालय के दूसरे तरफ

हिमालय की वादियों पर थे खून के निशान
हिमालय से आने वाली बर्फीली हवाएं
सायं - सायं कर
टकराती खिड़कियों से
कहती लहुलूहान कहानी

सच्चाई के दूसरे अंश को डाल दिया
कारागार में
पर झूठ को विश्वास नहीं था अपने सैनिकों पर
रात को सोते- सोते वह जाग जाता
और देखता
सच्चाई को बंधा हुआ जंजीरों में
जांच करता उसके गर्भ में क्या पल रहा है

कहीं आठवां शिशु तो नहीं

सच्चाई मुस्कराती
यातना में करूणामयी मुस्करहाट
एक बेड़ी और बढ़ाने का आदेश देता झूठ

अपनी नींद में आश्वास्त होता

सच के तीसरे अंश को
मिलाया झूठ में कुछ इस तरह
झूठ लगे सच से ज्यादा चमकदार
यातनागृह बनाए गए ताजमहल से भी खूबसूरत
देखने आते पर्यटक
देखते सच की फोटुएं
खुशी- खुशी झूठ के साथ दावतें उड़ाते

सच लहुलुहान था
सच कारागार में था
सच दयनीयता के साथ दर्शनीय था
सच  अकेला था
सच की सबसे बड़ी ताकत यह थी कि
वह सच था

इतने वर्ष , दशकों  बाद भी
दीप की तरह जलता रहा सच
पर ना जाने क्यों बार -बार बुझने लगी है झूठ की मशाल




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