गुरुवार, 5 नवंबर 2015

कारावास में खिड़की


कारावास में खिड़की
कारावास में छोटी सी कोठरी
कोठरी के कोने में एक खिड़की
तीसरे दरजे के टार्चर के बाद
भीतर तक टूटा हुआ
देख रहा है एकटक
छत की तरफ नहीं
खिड़की की तरफ

खिड़की जालीदार नहीं है
उस पर शीशा लगा है
उससे हवा नहीं आती
हवा जितनी भी आती है
दरवाजे के नीचे से आती है
दरवाजे के बीच में एक जाली है
जिससे उसको मिलता है
लानतों के साथ दो वक्त का खाना
पर उसे लगता है
वह हवा और खाने की वजह से नहीं
खिड़की की वजह से जिंदा है

खिड़की से दिखता है
पूरा आकाश नहीं
आकाश का कोना
खिड़की देती है
उसकी स्मृतियों का आयाम
परिवार , छुटे हुए मित्र, बचपन ,  प्रेम
खिड़की देती है
इतनी जलालत और जिल्लत और थर्ड डिग्री टार्चर के बाद
जीने की वजह

कभी कभी खिड़की पर बैठ जाती है चिड़िया
खटखटाती है,
संवाद करती है
उसे बाहरी दुनिया की खबर देती है
तब उसे पता लगता है
अब भी धरती में है स्पंदन

कभी कभी उसे लगता है
यह खिड़की एक दिन बन जाएगी दरवाजा
और उसे ले जाएगी
नीले आकाश के उस पार
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anilhindi@gmail.com

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