हम सब कवि हैं
हम सब
कवि हैं
हाँ ,
हम सब ही हैं
कवि।
सिर्फ
जो छपे
दुनिया ने जाना
स्थापित हुए
बड़े-बड़े लोगों ने माना
वो
जो बुनता है
वो
जो चुनता है
वो जो
देता है आकार माटी को
वो जो
लाता है हरियाली
चीर कर
धरती की छाती को
वे
दुधमुहां
जो बनाता है
रेत में घर
वो जो
बहाता है पसीना
गढ़ता है नई दृष्टि
कूटता है पत्थर
वो जो
भीनी-भीनी गन्घ लेकर
इस बार भी खिला
वो जो
तिनका-तिनका बटोर
बनाती है घोंसला
सभी हैं
कवि
सभी ने जिए हैं
कल्पना के क्षण
सभी ने
झेली है
प्रसव वेदना
सभी ने किया है
कुछ न कुछ
सृजन
सभी हैं कवि
तभी है सृष्टि
हम सबकी तलाश है
अपने-अपने
तनाव की अभिव्यक्ति
जिस दिन
हम
कवि नहीं होंगे
विश्वास कीजिए
हम कहीं नहीं होंगे।
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