स्वीकारोक्ति
जब-जब
फटी हुई बिवाइयों के बीच से
एक चेहरा झांकता है
और
मुझसे पूंछता है-
क्यों भाई
क्या तुम
मुझे सी सकते हो ?
जब-जब
घातों , लातों और प्रतिघातों से
क्षत- विक्षत
अंधेरे में
कोई मुझे टटोलता है
और
मुझसे पूछता है-
क्यों भाई
क्या तुम
मेरा अंघेरे पी सकते हो?
जब-जब
कोई
मुझसे पूछता है-
क्या कविता में
तुम
मुझे
हुंकार और गर्जन कर
उनके विरूद्व
सीधी सपाट भाषा में
जी सकते हो
विश्वास कीजिए
तब-तब
मैंने अपने आप को
अपने ही सामने
कलम और बंदूक फेंके
आत्मसमर्पण की मुद्रा में
खडा पाया है
क्या
तुमने भी कवि
क्या
तुमने भी ?
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anilhindi@gmail.com
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