शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

स्वीकारोक्ति



 स्वीकारोक्ति





जब-जब

फटी हुई बिवाइयों के बीच से

एक चेहरा झांकता है

और

मुझसे पूंछता है-

क्यों भाई

क्या तुम

मुझे सी सकते हो ?

जब-जब

घातों , लातों और प्रतिघातों से

क्षत- विक्षत

अंधेरे में

कोई मुझे टटोलता है

और

मुझसे पूछता है-

क्यों भाई

क्या तुम

मेरा अंघेरे पी सकते हो?

जब-जब

कोई

मुझसे पूछता है-

क्या कविता में

तुम

मुझे

हुंकार और गर्जन कर

उनके विरूद्व

सीधी सपाट भाषा में

जी सकते हो 


विश्वास कीजिए

तब-तब

मैंने अपने आप को

अपने ही सामने

कलम और बंदूक फेंके

आत्मसमर्पण की मुद्रा में

खडा पाया है

क्या

तुमने भी कवि

क्या

तुमने भी ?

*****
anilhindi@gmail.com

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