मंगलवार, 11 मई 2021

जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया- अनिल जोशी

 




जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया

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आयु का अमृत  घट, पल -पल कर रीत गया

जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया


प्रश्नों के जंगल में , गुम-सा खड़ा हूँ मैं

मौन के कुहासे में, घायल पड़ा हूँ मैं

शब्द कहाँ, अर्थ कहाँ, गीत कहाँ, लय कहाँ

वह एक स्वप्न था , यह है एक औ जहाँ

ख़ाली गलियारा है, और हर तरफ धुंध

परिचित क्या, मित्र क्या, प्रियतम मीत गया


जीवन से बाजी में समय देखो जीत गया 


अधरों की बातों को, कल तक तो टाला था

आज अंधेरा गहरा, कल तक उजाला था

टलते रहे प्रश्न जो, उत्तर क्या पाएंगें

अग्नि की लपटों में, धू -धू जल जाएँगे

मीलों -मील दुख झेलाक्षण भर को सुख पाया

पलक भी झपकी थी, वह क्षण भी बीत गया


जीवन से बाजी में , समय देखो जीत गया


भोले विश्वासों को, आगत की बातों को

रेत से इरादों को, सपन भरी रातों को

सच माना, सच जानाऔर फिर ओढ़ लिया

शाश्वत हैं, दावों से, खुद को यूँ  जोड़ लिया

साँसे थी निश्चित, अनिश्चित इरादे थे

 श्मशानी वेदना में, अमरता का गीत गया


जीवन से बाजी में , समय देखो जीत गया


उठते हाथ अब, पग भी ना बढ़ पाए

चेतना अचेत हुई, होंठ भी खुल पाए

दीप-सा समर्पित यह, नदिया को अर्पित यह

आँसू से गंगा का, आंचल अब विचलित यह

यही तो भागीरथ था, यही तो कान्हा था

साहस-गाथाएँ  रहीं, गया वह अतीत गया


जीवन से बाजी में , समय देखो जीत गया 

        (अनिल जोशी के सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह - ‘शब्द एक रास्तासे, anilhindi@gmail.com)

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