मंगलवार, 17 मार्च 2020


दिल्ली दंगों पर लिखी एक कविता

गंगा - जमनी तहज़ीब

मै गंगा जमनी तहज़ीब को ढूँढते ढूँढते 
यहाँ आ गया हूँ
शिव विहार के पास इस नाले में
जहाँ बोरियो मैं बँधी है विभाजन की विरासत की सडांध
हर छोटा बड़ा शहर
बसा होता है
पानी की निर्मल धार के पास
जो उसे देती है जीवन
और उजास
इसमें यमुना का कैसा पानी है
क्या इसमे तुलसी , कबीर , रसखान, गालिब और ख़ुसरो
की वाणी है
नाले में है टूटी
हुई बोतलें , फटे हुए लिथडे, घरों का गंद
बोरियों में हैं लाशें बंद
किसी का धड़ है ,
किसी की टाँग
तैर रही है किसी की कटी हुई ज़बान
किसी के अपने है
किसी के सपने हैं
शिव विहार में
सिर्फ़ दो जगह भीड़ है
श्मसान मे या क़ब्रिस्तान में
बच्चे गांधी जी पर निबंध तैयार कर रहे है
गाधी जी इस कीचड़ भरे नाले के पास
बोरी में बंद है
बेबस और उदास
शहर में इतना बड़ा काण्ड
और
उन्हे बना दिया है एक बहुत बड़ा इंटरनेशनल ब्राण्ड
हर चीज़ बँट गई है
हाथ , नाक , कान , दिल , सीना
रगों का ख़ून, हाथ का पसीना
हर कोना
वैसा ही घृणित ,वैसा ही कमीना
चारों तरफ पसरा हुआ एक सन्नाटा है
गंगा -जमनी तहज़ीब का असली सच
यह
शिव विहार का यह नाला बताता है

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