ना बात
ना चिट्ठी, ना फोन ,ना ई- मेल
यूं तो निकला सूरज, हुआ दिन
यू तो निकला चांद, हुई रात
पर लगता है सब कुछ वहीं रहा खड़ा
समय आगे नहीं बढ़ा
क्या तुम नाराज हो
क्या तुम नाराज हो
या संकोच है
आत्मा पर यह कैसा बोझ है
इसे उतारो
मिलो ,बातें करो, मुझे समझाओ
किसी भी कीमत पर मुझसे दूर नहीं जाओ
मिलो ,बातें करो, मुझे समझाओ
किसी भी कीमत पर मुझसे दूर नहीं जाओ
यह पत्र नहीं है, यह स्वालाप है
जो रोज करता हूँ
पूछता हूं, अपने होने का अर्थ
आह्वान करता हूँ -स्व: का
आह्वान करता हूँ -स्व: का
अपने को समय के बरक्स रख
समय जो बीत गया
समय जो बीत रहा है
समय जो है क्षितिज के पार
समय जो बीत गया
समय जो बीत रहा है
समय जो है क्षितिज के पार
बहुत खूब सर
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर!
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