गुरुवार, 24 सितंबर 2015

भीड़


भीड़ 



अगर मुझे पता होता 
कि 
हर सीधी और टेढ़ी गली
बाजार के रास्तों से भीड़ बन जाती है
तो मैं

घर वापिस लौट जाता

जहाँ 
नकेल और चारा 
मेरा इंतजार कर रहे थे


भीड़ में घुसने तक
मेै
सोचता रहा-
कैसे छुपाऊंग
तलवों में लगा खून ?
रात में ही मैंने
दुलत्ती से तीन मासूमों को मारा है
चेहरे पर कहीं
चमक ही जाएंगें
रामलीला में डकारे
चंदे के सिक्के
पर भीड़ में घुसने के बाद
मेरा अपराधबोध समाप्त हो गया

वहाँ 
सब मुझ जैसे ही चेहरे थे
मुझ जैसे ही 
शांत, शालीन, सौम्य
और 
मर्यादित

सब पिछले वालो के 
आगे वालो की 
जेब में हाथ थे
ये ना कहना
कि 
वो जेबतराश थे
जब तक तुम ये ना जान लो
कि
उनके क्या हालात थे

ठेलपेल थे
धक्का था
लोग इसी मे
प्रगतिशीलता का 
एहसास पा रहे थे

क्या जरूरी था
उन्हें बताना 
कि हर कदम पर
वो आगे नहीं
पीछे आ रहे थे

जोर - जोर से आवाजें
लेकिन
कोई नहीं सुनता
एक मां ने 
बेटे को
चिपका लिया
छाती के साथ
जब उसे पता लगा
लोकतंत्र घूम रहा है
यही कहीं आसपास

यकायक
कोई पैर
फुटपाथ पर
किसी अंतड़ी को कुचल जाता
बवेला मच जाता
अगर आयोजक
जन-गण-मन का रिकार्ड ना बजाता
लोगों ने 
फिर से
हरी बतियो के इशारे पर 
चलना शुरू कर दिया है



सुंदर !
कितना सुंदर !!
यह हाट
यह बाजार
इसका रचियता कोई ब्रह्मा नहीे
इसका रचियता है - साहूकार

ट्रैफिक पुलिस वाला
व्यवस्था के पड़ोस में बैठा
बीड़ी पीता
ऊँघ रहा है
उसे जगाओ
वो नई ट्रैफिक व्यवस्था बतलाएगा
देखो 
जो रास्ते
मंदिर , मस्जिद, गुरूदारे की और जाते हैं
उनपर मत जाना
आजकल वहां
भगवान नही मिलते है
कही अंदर घुस जाओ
और फिर
घबराते हुए भागो
कहो-
कहां हैं यहां
राम, अल्लाह और वाहे गुरू !
क्या आजकल यहाँ
साँप पलते हैं !

दोस्तों के कहने पर
मैं भी
एक दुकान पर गया
पूछा- क्यो भाई साहब
इस बार
सफेद कबूतरों की गर्दन मरोड़ने का खेल
कहाँ हो रहा है !
उसने 
मेरी गर्दन की ओर देखा
मैं झेंप गया

दूसरी दुकान पर 
मैंने 
पारिचारिका से पूछा - क्यो जी 
' ये पोस्टर है या आदमी
पहचानिए "
प्रतियोगिता कहाँ हो रही है ?
उसने मुझसे पूछा - आपने
यहाँ कोई आदमी देखा है ?
इससे पहले 
वो मुझे घूरती
मैं झेपता हुआ
आगे बढ़ चुका था

अब मैंने
उस 
अकड़कर चलते हुए
नौजवान से पूछा - क्यो भाई
तुम
इतना अकड़ कर
क्यो चल रहे हो ?
क्या तुम्हारा भी कोई परिचित
रोजगार दफ्तर में काम करता है ?
अब 
वो झेंप गया

कहीं कोई उत्तर नहीं
इसी तरह
बगले झांकते हुए लोग
वापिस
घरों में जा रहे हैं
और मैं जान चुका हूँ
भीड़ तो
अपने आपको भुलाने का 
जोरदार बहाना है
आदमी की 
बुनियादी जरूरत
भीड़ नहीं 
नंगा गुसलखाना है ।

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